Tuesday 9 September 2014

वो हनुमान सर्किल वाली लड़की

******  Real Life Story*****

पिछले वीरवार को मेरे साथ कुछ ऐसा हुआ कि मेरे अंदर बहुत कुछ हिल गया था. (दिमाग़ नहीं हिला, वो तो पहले से हिला था) इस बार दिल और जज़्बात समेत और बहुत कुछ हिला. प्यार की जो भूख मैं कब से दबा कर बैठा था, भड़क गयी अचानक ज्वालामुखी की तरह. इसमें उस ऊपर वाले या कुदरत का बहुत बड़ा हाथ था. जो कोमल नाज़ुक लड़की, जिसको मैं physically बाहों में उठा भी सकूँ, उसपर दिल ज़्यादा आता है.

उस दिन मैं 
रूम से निकला था एक बहुत पुराना गाना देख कर. उसमें जो हीरोइन थी, वो थी बहुत सुंदर, तो अब retire हो चुकी है मगर हीरो अब भी फ़ौजी का रोल कर सकता है. Guess who! गाना था, "वादा रहा सनम, होंगे जुदा ना हम.... चाहे ना चाहे ज़माना .... हमारी चाहतों का, मिट ना सकेगा फसाना .......".  मुझे नहीं पता था आज कुदरत या भगवान इसी लड़की की duplicate दिखाने वाले हैं.

घर से जाने के बाद गाने-वाने का भूल भी गया सब. शाम को अलवर की लोकल मार्केट (हनुमान सर्किल) से निकलते हुए एक लड़की पर नज़र पड़ी. उसको शायद बहुत पहले भी एक-दो बार देखा हुआ था. वही थी हीरोइन जैसी! साथ में एक सहेली भी थी. वो उस दिशा से चलती आ रही थी कि मुझे 90 डिग्री पर cross करने वाली थीं. अगर मैं अपनी गति से चलता रहता तो उनके आगे से निकलता, मगर मैं धीरे हो गया था. मेरी नज़र उसके पैरों पर भी पड़ी. ओये-होये .... उसने जो चाँदी की पायल पह्न रखी थी जीन्स के नीचे, वैसी तो आजकल लड़कियाँ पहनती ही नहीं. वैसे भी चाँदी काफ़ी महंगी होती है, लड़कियाँ 10-20 रुपये वाली junk jewellary anklets से काम चलाती हैं.

तो उसके संगमरमर के जैसी रंगत वाले पाँव में वो पायल कुछ इस तरह लग रही थी कि अगर मैं 6-8 सेकेंड से भी पहले नज़रें हटा लेता तो ये अपमान होता भगवान की बनाई ऐसी चीज़ का और कुफ्र होता मुझपर! ये नज़ारा तो मैं वैसे मौका मिले तो पूरी रात भी देख सकता था. पायल की वो छोटी-छोटी ढेर सारी झालरे एक साथ आगे-पीछे झूलती हुईं और लिष्कारा मारती हुईं ...... बजने वाला एक भी घुँगरू नहीं था, मगर संगीत मेरे कानों तक पहुँच रहा था. मेरी चाल जो काफ़ी तेज़ है, और भी धीमी हो कर लड़कियों से भी कम हो गयी. चौराहे पर सड़क पार कर रहा था मैं उस समय. शुक्र है किसी वाहन ने मारा नहीं! इतने में हीरोइन की नज़र मुझपर पड़ गयी. पता नहीं कैसे, पर लड़कियों को पता बहुत जल्दी चल जाता है कि कोई कहाँ देख रहा है. मेरा पूरा ध्यान उसके पाँव पर ही था. उसके चेहरे पे एकदम हँसी आ गयी और उसने दूसरी तरफ चल रही सहेली की तरफ मुड़कर, उसको बाँह से एक ठुड्डा सा मार कर, मुँह उसके कान के नज़दीक ले जाकर कुछ एक-दो शब्द बोले और दोनों हँसने लगीं. उतने में दोनों मेरे आगे से गुज़रीं. काफ़ी नज़दीक थीं, अगर धीरे से मुँह में भी कुछ बोला जाता तो भी एक-दूसरे को सुन सकते थे. अचानक वो मेरी तरफ मुड़ी. ऊपर का होंठ उसने दाँतों में दबा कर अपनी हँसी या मुस्कुराहट रोक रखी थी, मगर आँखों में पूरी शरारत थी. मेरे तो होश ही जा रहे थे. सामने से वो मेरा रास्ता पार कर गयी और मैं पीछे से निकल गया. मगर उसी वक़्त मेरे कान में हू-हू=हूँ .... हँसने की आवाज़ पड़ी. वो हंस रही थी बहुत ही प्यारे अंदाज़ में. दूसरी लड़की की आवाज़ नहीं थी. कुछ आगे जा कर मैं गर्दन 120 डिग्री बाएँ घूमा कर फिर उसकी तरफ देखा, तो क्या देखता हूँ कि उसकी गर्दन भी 120 डिग्री दाएँ घूमी हुई थी और आँखें, जिनमें अब हँसी नहीं मगर शायद एक सवाल था, मुझे ही देख रहीं थीं. सवाल शायद ये था, "बस क्या? कहना कुछ नहीं?"

आ गया घर चुपचाप, अपनी चाहत दिल में दबाए. रूम आकर भी अपने आप में नहीं था. उस शाम-रात मैं फेसबुक पर भी नहीं आ पाया. कई बार नहीं आता, मगर उस दिन तो और कोई काम भी नहीं किया कंप्यूटर पर. हालत यह थी कि जब खाना खाते हुए उज्जवल ने पानी देने को कहा तो मैंने मोबाइल दे दिया . सारा ध्यान हीरोइन के सुंदर होंठों की 'हू-हू-हूँ' पर और उसकी पायल पर. आख़िर सोने के लिए लेटा तो भी आँखों के आगे उसका वो सहेली को ठुड्डा मारना, वो हँसना ..... वो ऊपर का होंठ दाँतों में दबाकर हँसी रोकना, आँखों की वो शरारत, पायल की वो बीसियों झालरे झूल- झूल कर लिशक्ती हुईं. उसके वो गोरे सुंदर पाँव गुलाबी नेल-पोलिश से सजे......

मन कहता है कि अगली बार अगर वो दिख गयी तो कुछ ना कुछ ज़रूर कहूँगा. मगर दिखेगी कहाँ? और दिखेगी कब? और दिख भी गयी तो उससे कहूँगा क्या? भगवान मुझे थोड़ा सा बेशर्म क्यों नहीं बनाया? सोच तो रहा हूँ पक्का कि अगली बार चुपचाप नहीं लौटूँगा, मगर मुझे पता है अगली बार भी मैं 'उससे अगली बार' के लिए मामला लटका कर रूम आने वाला हूँ. यही तो होता आया है बरसों में. क्या-क्या गँवाया है वो तो सोच कर भी दिल तड़प उठता है. एक मन किया कि gymming ठीक से दोबारा regular करके जिस्म को इससे भी अच्छा ऐसा बना लूँ कि डोले-शोले देख कर लड़कियाँ 120 की बजाए 180 डिग्री मुड़ कर भी देखें और कुछ पूरा चक्कर 360 डिग्री खा कर बेहोश भी हों! (मगर ये सब बनाने के लिए टाइम किसके पास है और मेहनत इतनी कौन करता है? अभी तो हफ्ते में 1-2 बार भी मुश्किल होता है. खैर देखेंगे ....)

वैसे किसी ने मुझे ये भी कहा था कि तेरे चेहरे पर honesty और आँखों में बहुत ज़्यादा प्यार नज़र आता है और लड़कियाँ सबसे पहले यही भाँप जाती हैं. ये देखने के बाद और कुछ नहीं देखना होता उन्हें.

भगवान, अब अगर मेरी तपस्या तोड़नी ही है, और जान-बूझ कर मुझे उनपर और उनको मुझ पर फेंक ही रहे हो, तो ढंग से बात भी करा दो ना! वही सारस और लोमड़ी वाली दावत ना देना जिसमें सारस ने लोमड़ी को खीर सुराही में परोसी थी, जिसमें उसका मुँह ही नहीं घुसता था. अरे खिलानी है तो ढंग से प्लेट में डाल कर, साथ में चम्मच दे कर खिलाओ ना! और नहीं खिलानी तो दिखाते क्यों हो? और अगर इस बार भी पहले की तरह करना है कि मुझे दिखाकर मेरे सामने किसी और को खिलानी है ..... तो इस बार ऊपर आ के मारूँगा!!!!

मैं उससे बात क्या करूँगा और किस तरह या किस बहाने से करूँगा, कोई सच्चा दोस्त बता सकता है मुझे? 

-सुभाष महला